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Wednesday, 5 November 2014

बॉलीवुड के गलियारों में इलाहाबाद……

                                               लेखक: आशुतोष अस्थाना






जब राज कपूर ने 1953 में आई ‘आह’ फिल्म में टैक्सी वाले से कहा कि इलाहाबाद चलो! तो सिनेमा घरों में फिल्म देखने आये तमाम इलाहाबादियों के चेहरे पर ख़ुशी की एक लहर दौड़ गई. 2000 में आई फिल्म ‘बुलंदी’ में जब रेखा ने रवीना टंडन को अंग्रेजी में तीखा जवाब देते हुए कहा था कि, “I am a graduate from Allahabad University!” (मैंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से स्नातक किया है!) तब इलाहाबादी दर्शकों के मन में उनके अपने विश्वविद्यालय के लिए आताह सम्मान जागृत होगया था. कुछ अजीब सी बात है ही इस शहर में यही कारण है की सालों से इलाहाबाद का अस्तित्व हिंदी फिल्मों में देखने को मिलता है और हो भी क्यों ना! इस शहर ने भारतीय फिल्म जगत को कई नायाब हीरे जो दिए हैं! अपने अनूठे अंदाज़ और अलग मिजाज़ के कारण इलाहाबाद का नाम बॉलीवुड के गलियारों में गूंजता रहता है.


एक समय था जब इलाहाबाद सिर्फ संगम के लिए जाना जाता था लेकिन साल 1942 में इलाहाबाद शहर की एक नई पहचान ने जन्म लिया. महान कवी हरिवंशराय बच्चन के घर में जन्म हुआ 21वीं सदी के महानायक अमिताभ बच्चन का जिन्होंने अभिनय को एक नया आयाम और इलाहाबाद को बॉलीवुड में नया मुकाम दिया. 70 के दशक से आज तक इस इलाहाबादी का बोलबाला भारतीय फिल्म जगत में है. बच्चन के अलावा तिगमांशु धूलिया, आदित्य श्रीवास्तव, विजय बोस, निखिल आडवाणी, अंशुमन झा, नर्गिस, इन्द्राणी मुख़र्जी, दीपराज राणा, अनुभव सिन्हा, तनवीर ज़ैदी आदि जैसे कई महान कलाकार हैं जिन्होंने बॉलीवुड में अपनी छाप छोड़ी है और देश-विदेश में अपना लोहा मनवाया है.



एक ओर जहाँ इन कलाकारों ने इलाहाबाद को गौरव दिलाया है वही दूसरी ओर इस शहर की अलग परम्पराएँ और देश से जुड़े हर आयाम में भागीदारी होने के कारण, शहर को फिल्मों में हमेशा से दर्शाया जारहा है. इतिहास साक्षी है की इलाहाबाद ने देश में हुए हर परिवर्तन, हर कोशिश और हर इंक़लाब को देखा है. सामाजिक प्रणयता के रूप में इलाहाबाद कई पठ-कथाओं का आधार रहा है. अक्सर फिल्मों में इस शहर को ऊपर से शांत लेकिन अन्दर से ज्वालामुखी की तरह ध-धकता हुआ दर्शाया गया है. इलाहाबाद के सामाजिक, राजनितिक, आर्थिक और भोगोलिक पहलुओं को दिखाते हुए निर्देशक-निर्माताओं ने इस शहर के ज़रिये करोड़ो फिल्म प्रेमिओं का दिल जीता है.



2003 में आई ‘हासिल’ फिल्म ने दर्शकों के मन में इलाहाबाद के लिए बनी आस्था और धर्म की नगरी वाली छवि को मिटाया और विश्वविद्यालय से जुड़ी राजनीती को बखूबी दर्शाया. निर्देशक तिग्मांशु धुलिया ने, फिल्म में इलाहाबादियों का यथार्थ चित्रण किया. 2005 में आई फिल्म ‘सहर’ में उत्तर प्रदेश के गुंडा राज और व्यवस्थित रूप से किये गए जुर्म का चित्रण किया गया. यूँ तो इस फिल्म में उत्तर प्रदेश के कई शहरों को दिखाया गया लेकिन इलाहाबादियों के लिए ख़ुशी की बात तब आई जब अरशद वारसी ने अपने पुलिसकर्मियों को इलाहाबाद जाकर छान-बीन करने को कहा. साथ ही फिल्म के विलन सुशांत सिंह के इलाहाबाद जाने की बात पर फिल्म देखने आए तमाम इलाहाबाद के दर्शक उत्साहित होगये. यूँ तो फिल्म एक गंभीर मुद्दे पर थी, लेकिन इलाहाबाद की सड़कें और यहाँ के रिक्शे देख दर्शक तालियाँ बजाने से खुद को नहीं रोक पाए थे. इसी प्रकार 2009 में रिलीज़ हुई फिल्म ‘रोड टू संगम’ के शुरूआती दृष्य में परेश रावल को खुसरो बाग़ में टहलता देख इलाहाबाद के दर्शक फिल्म के पहले सीन से ही फिल्म से जुड़ गए थे. हैरानी की बात तो तब हुई जब 2009-10 में आई फिल्म ‘चल-चलें’ की शूटिंग मुंबई या दिल्ली जैसे किसी बड़े शहर के स्कूल में नहीं बल्कि इलाहाबाद के एक बहुत बड़े और प्रसिद्ध स्कूल संत जोज़फ कॉलेज में हुई जिसमें मिथुन चक्रवर्ती, मुकेश खन्ना जैसे बड़े कलाकार तो तन्वी हेगड़े जैसी प्रसिद्ध बाल कलाकार ने अभिनय किया था.





इलाहाबाद को बड़े परदे पर दिखाने का सिलसिला आज भी जारी है. 2013 में नील नितिन मुकेश की फिल्म ‘इश्केरिया’ की शूटिंग इलाहाबाद के कई जगहों पर हुई. फिल्म के रिलीज़ होने में फिलहाल तो कुछ समय है लेकिन कई इलाहाबाद अपने शहर को 70एम एम के परदे पर फिर से देखने के लिए उतावले हैं.

 



चाहे चन्द्रशेखर आज़ाद से जुड़ी फिल्म हो या आधुनिक समय की इश्केरिया जैसी फ़िल्में हों, इलाहाबाद किसी न किसी रूप में दुनिया के सामने बड़े परदे पर आता रहता है और अपनी आस्था, संस्कृति और दिलदार इलाहाबादियों से दुनिया को रूबरू करता रहता है.    

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