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Saturday, 18 April 2020

सही-गलत के बीच फंसा धर्म

हो ये रहा है कि पूरी शिद्दत से गलत को गलत कहा जा रहा है और साथ ही ढिंढोरा पीट-पीट कर सही को सही भी कहा जा रहा है...मगर समस्या ये है कि खुद की गलत मान्यताओं या कृत को कोई गलत नहीं कह रहा और दूसरे की मान्यताओं या कृत को गलत ठहराने की होड़ लगी है। 
अपनी गलती को ढकने के लिए सामने वाले की गलती को उजागर किया जा रहा है। खुद की गलती को छोटा बताने के लिए दूसरे की गलती को बड़ा बनाया जा रहा है। कहा ये जा रहा है कि अकेले मैं ही गलत नहीं हूं तुम भी गलत हो...और इस उधेड़बुन में कोई ये ध्यान नहीं दे रहा कि दो गलत चीज़ों को जोड़ कर सही चीज़ की उतपत्ति नहीं होगी। 
तुम अगर हिन्दू हो और मुसलमान की गलती ढूंढ रहे हो या फिर तुम मुसलमान हो और हिन्दू की गलती ढूंढ रहे हो तो तुम वाकई अंदर से खोखले हो क्योंकि दूसरे पर सवाल उठाने से पहले अगर तुम खुद ही अपनी कमियां और खामियां नहीं देख पा रहे तो तुम कट्टरपंथी विचारधाराओं के द्वारा मूर्ख बनाये जा चुके हो। 

ये सच है कि हर किसी के लिए उसका धर्म सम्मानजनक है, इसलिए किसी और के द्वारा बार बार उसपर सवाल उठाया जाना गलत है, लेकिन तुम खुद भी अपने धर्म और उसके गलत कृत पर अगर सवाल नहीं उठा रहे तो समझ जाओ कि तुम धर्म के चंगुल में फंस चुके हो।
खुद को अपने धर्म का रक्षक समझना बंद करो! और बंद करो अपने ज़हरीले दिमाग के साथ सोशल मीडिया के अखाड़े में कूदना! 5-6 इंच के मोबाइल फोन से तुम अपने 'धर्म' को बचाने के लिए जिस धर्म युद्ध को इस सोशल मीडिया पर छेड़ रहे हो उसकी ज़रूरत नहीं है! बंद करो ये सोचना कि धर्म खतरे में है क्योंकि जिस धर्म की गलत तस्वीर तुम्हारे प्रिय नेताओं ने तुम्हें दिखाई है वो असल धर्म नहीं है! तुम्हें अगर धर्म के लिए कुछ करना है तो घर में बैठकर एक दूसरे के धर्म पर कटाक्ष करना बंद करो! उस धर्म के लोगों के उत्थान के लिए कुछ करो! तुम्हें अपने धर्म की अच्छाई बताती एक फेक न्यूज़ मिलती है और तुम उसे झटपट सोशल मीडिया पर शेयर कर देते हो ताकि तुम दूसरे धर्म वाले पर हमला कर सको और ये बात सको कि तुम्हारा धर्म उसके धर्म से कितना महान है! 
ये धर्मों की तुलना करने से, और एक को दूसरे से बेहतर बना लेने से तुम क्या हासिल कर लोगे? राजनीतिक दलों ने हमें बिना बताए अपने अपने धर्मों का 'रक्षक' बना दिया है...विश्वास मानो धर्म को ऊंचा या नीचा दिखाने का ये खेल इतना बुरा है कि इसका कोई अंत नहीं है क्योंकि कोई भी दूसरे पर लांछन लगाने का मौका नहीं छोड़ना चाहता। 

क्या वाकई हमें अपने धर्म को लेकर इस प्रकार संवेदनशील होने की ज़रूरत है और इस कदर कि ज़हर फैलाते फैलाते हम खुद ज़हर बन जाएं!
खतरे में धर्म नहीं इंसान है और इस देश का हर नागरिक जिसने आंखें मूंद रखी हैं। 
अक्सर फेसबुक पर हम ये तंज़ मारते हैं कि 'अब फलाने धर्म के लोग चुप रहेंगे' या 'अब फलाने धर्म के लोग इसपर कुछ नहीं बोलेंगे'...सोच कर देखिए तो आप पाएंगे कि आप वाकई चुप हैं, क्योंकि आप सही चीज़ों के खिलाफ सवाल नहीं खड़ा करते! आप बेरोज़गार हैं तो आप क्यों नहीं आवाज़ बुलंद करते कि काबिल होने के बावजूद आपको नौकरी क्यों नहीं मिल रही! आप आवाज़ क्यों नहीं उठाते कि आपके शहर की सड़कें क्यों नहीं बनती! आपके धर्म के नेता आपको ये कह कर भड़काता है कि आप खतरे में हैं तो आप उससे ये सवाल क्यों नहीं पूछते कि अगर हमने तुम्हें चुना तो तुम हमें खतरे से कैसे बाहर निकालोगे? मगर ये सवाल तो काफी उलझे हुए हो जाएंगे! आपको अगर धर्म पर ही सवाल करना है तो अपने अपने धर्मों पर नज़र क्यों नहीं डालते! क्यों नहीं पूछते कि हमारे धर्म में ये जो कृत हो रहा है वो क्यों हो रहा है....मगर नहीं! आपको सिर्फ लड़ना है, दूसरों पर सवाल खड़े करने हैं और फिर सोचना है कि देश तरक्की क्यों नहीं कर रहा! देश इसलिए तरक्की नहीं कर रहा क्योंकि आप खुद को बदलना नहीं चाह रहे। आप राजनीतिक दलों की कठपुतली बने रहना चाहते हैं। आप अगर किसी भी पार्टी के अंध समर्थक हैं या अंध विरोधी हैं तो आप भी भक्त की ही श्रेणी में आते हैं, इसलिए खुद को भी ये उपाधि दे दीजिएगा। 
अंत में सबसे महत्वपूर्ण बात, आप देश में रहते हैं, अपने नेता चुनते हैं इसलिए उन्हें आपके जीवन को बेहतर करने का ज़रिया बनने दीजिये, आप उनकी राजनीति चमकाने का ज़रिया मत बनिये...रही बात धर्म की, तो ये शाश्वत सत्य है कि व्यक्ति पैदा होते के साथ ही धर्म में बंध जाता है मगर इसके ये मायने नहीं हैं कि आप मानवता भूल जाएं!
Jai Hind!
#Ashutosh

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