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Monday, 15 February 2016

विद्यार्थी हैं, आतंकवादी नहीं!

                     लेखक: आशुतोष अस्थाना

भारत का हर छात्र उच्च शिक्षा के लिए किसी बड़े और नामी शिक्षण संस्थान में पढ़ने का सपना देखता है. मेरिट की दौड़ में अव्वल आने के लिए कड़ी मेहनत करता है और कुछ ही ऐसे होते हैं जिन्हें बड़े संस्थानों से जुड़ने का मौका मिलता है. कई होनहार और काबिल छात्र जो मेरिट की सूची में या एंट्रेंस परीक्षा में कुछ अंकों से पिछड़ जाते हैं उनके ख्वाब भी टूट जाते हैं.



जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय भी उन्हीं कुछ शिक्षण संस्थानों में से एक है जिसमें हर छात्र दाखिला लेने का सपना देखता है पर सफलता कुछ के ही हाथ लगती है. जेएनयू में घटित हाल की घटनाएं इस विश्वविद्यालय में दाखिला लिए उन किस्मतवालों की बदकिस्मती है. देश की राजधानी में स्थित, भारत के पहले प्रधानमंत्री और स्वतंत्रता सेनानी के नाम पर बने इस संस्थान में देश विरोधी गतिविधियों का होना हैरान कर देने वाली बात है.



जेएनयू में आज जो कुछ भी हो रहा है वो बेशक दुर्भाग्यपूर्ण है. भारत का एक प्रतिष्ठित विश्विद्यालय जिसने अपनी साख हमेशा बनाये रखी थी आज उस पर मानो काला धब्बा सा लग चुका है. देश विरोधी नारे लगाना, अफज़ल गुरु को मसीहा बताया जाना, छात्रसंघ अध्यक्ष की गिरफ्तारी और अन्य छात्र संगठनों द्वारा मचाया जा रहा शोर-गुल, इन सभी घटनाओं ने इस विश्विद्यालय की शान में कमी कर दी है. गौर करने वाली बात ये है कि यहाँ के छात्र अफज़ल गुरु को शहीद मानते हैं. एक सरकारी शिक्षण संस्थान, जहाँ की फीस दूसरे संस्थानों से कम है, वहां के छात्रों का देश विरोधी नारे लगाना और पाकिस्तान का समर्थन करना किसी भी तरह जायज़ा नहीं है. जेएनयू की घटना पर राजनीतिक दल भी रण में दो-दो हाथ करने के लिए कूद पड़े हैं. 



जहाँ बीजेपी अपनी सरकार का समर्थन कर इस विश्वविद्यालय के छात्रों को सीधे-सीधे देशद्रोही बता रही है वहीँ अन्य पार्टियाँ इस पूरे मसले को बोलने की स्वतंत्रता का अधिकार घोषित कर रही हैं. छात्रसंघ अध्यक्ष की गिरफ्तारी को केजरीवाल और राहुल गाँधी ने असंवैधानिक और बोलने की आज़ादी को छीनना बताया है. सरकार और अन्य पर्त्यों के बीच तना-तनी बढ़ रही है. राजनाथ सिंह ने तो यहाँ तक बोल दिया की जेएनयू के छात्रों को हफीज़ सईद का समर्थन प्राप्त है. हर पार्टी के बड़े नेता जेएनयू का दौरा कर आ रहे हैं. कांग्रेस द्वारा बीजेपी पर किये जा रहे हमलों का जवाब बीजेपी गड़े मुर्दे उखाड़ कर दे रही है. पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी को भी बीजेपी कटघरे में लाने के लिए तयार है. इन सारे हंगामे के बीच सोशल मीडिया के कीड़े भी सक्रिय हो गए हैं. फेसबुक के बुद्धिजीवी जन और अधकचरे ज्ञान वाले भी खुलेआम विरोध करने और समर्थन करने से परहेज़ नहीं कर रहे. अब तो सोशल मीडिया के बुद्धिजीविओं ने सोशल मीडिया पर ‘शटडाउन जेएनयू’ का हैशटैग भी प्रचिलित कर दिया है.




इन सारी घटनाओं से इतर इस बात को नकारा नहीं जा सकता कि इस विश्वविद्यालय में पढ़ने वाले छात्र बुद्धिजीवी वर्ग के होते हैं. 1969 में बने इस विश्वविद्यालय के पुराछात्रों की सूची में प्रकाश करात, सीताराम येचुरी, थोमस आईसैक, अनन्या खरे और निर्मला सीतारमन जैसी महान हस्तियाँ हैं. कुछ अराजक तत्वों के कारण इतने बड़े संस्थान को बंद कर देना या संस्थान को बदनाम करना सही नहीं है. नेताओं का ऐसे समय में अपनी राजनीतिक रोटियां सेकना भी दुखद है. सबसे बड़ा प्रश्न ये है की विपक्षी दल वहां के छात्रों द्वारा किये जा रहे हंगामे को जायज़ कैसे ठहरा सकते हैं! देश के संसद पर हमला करने वाला शहीद कैसे हो सकता है! इस वाकये से साफ़ दिखता है की पार्टियों को छात्रों की चिंता नहीं है, उन्हें सिर्फ एक दूसरे को नीचा दिखाने का मौका चाहिए. सरकार और दूसरी पार्टियों को वहां के छात्रों के बारे में सोचना चाहिए. सरकार जेएनयू के छात्रों को देशद्रोही का तमगा नहीं दे सकती. युवा ही देश का भविष्य है और उनके भविष्य के साथ खिलवाड़ नहीं होना चाहिए. विश्वविद्यालय के अराजक तत्वों के खिलाफ सख्त कदम उठाना ज़रूरी है. मैं भी मानता हूँ की उन्हें जेल भेजा जाए और सख्त कार्रवाई की जाए लेकिन गेहूं के साथ घुन पिसने वाली स्थिति नहीं पैदा होनी चाहिए. 



उस भीड़ में कई छात्र ऐसे भी होंगे जो भ्रष्ट मानसिकता के शिकार नहीं, सिर्फ बहकावे में आ गए होंगे. उस जेएनयू में कई छात्र ऐसे भी होंगे जिन्होंने जीवन में आगे बढ़ने का और माता-पिता का नाम रोशन करने का सपना देखा होगा. कई छात्र ऐसे होंगे जिनका इस पूरी घटना से कोई वास्ता नहीं है. वो सभी छात्र हैं, आतंकवादी नहीं. जेएनयू के देशद्रोही अराजक तत्वों के साथ अन्य छात्रों को जोड़ना और एक ही दृष्टि से देखना गलत है. सरकार को मामले की तेह तक जाना होगा और बहकावे में आये छात्रों को साथ ही इन सारी घटनाओं से दूर रहने वाले छात्रों को सही दिशा दिखानी होगी. छात्रों को जेल में भर देना इस मसले का हल नहीं है.