आज जब दलितों को आरक्षण मिल रहा है, उनके भले के लिए सोचा जा रहा है तो तुम छाती पीट रहे हो, हंगामा मचा रहे हो, मगर तुम भूल रहे हो कि इस स्थिति के लिए तुम खुद ज़िम्मेदार हो. इतने सालों से चली आ रही जाती व्यवस्था से पैदा होने वाली समस्याओं पर तुमने कभी इंसान के रूप में सोचने की ज़हमत ही नहीं उठायी. तुम्हारा काम बनता गया तो तुमने ये सोचना भी नहीं ज़रूरी समझा की आगे चल कर जाती के आधार पर समाज का बंटवारा तुम्हारे लिए ही नासूर बन जाएगा. तुमने अपने पंडित होने पर, कायस्थ होने पर, ठाकुर होने पर अत्यधिक गर्व महसूस किया और वही भावना अपने बच्चों के अंदर भी डाली. तुमने इंसानी जज़्बातों का और प्रेम का पाठ पढ़ाने की बजाये बच्चों को ये बताया की जमादारों को मत छूना, वो गंदे होते हैं, डोम से दूर रहना, वो अपवित्र हैं. हम पंडित वाले शर्मा हैं, तुम्हारा दोस्त लोहार वाला शर्मा है इसलिए उसके साथ ज़्यादा मत घूमा करो. जो लोग Srivastav लिखते हैं वो असली कायस्थ नहीं होते, असली कायस्थ Srivastava लिखते हैं. वो गुजरात वाला पटेल नहीं नीच जात वाला पटेल है. कायस्थ वाले वर्मा Varma लिखते हैं, दूसरी जात के लोग Verma लिखते हैं.
दिमाग पर हल्का सा ज़ोर डालो और सोचो की तुमने अक्षरों के आधार पर इंसान का बंटवारा कर दिया. तुमने शिक्षक की, बैंक के अधिकारी की, डॉक्टर की जात तक का पोस्टमोर्टेम कर दिया.
तुमने 5 साल के बच्चे को ये सिखा दिया की जमादारों को चुल्लू से पानी पिलाया करो, बोतल उसके हाथ में मत दिया करो. तुमने 10 साल के बच्चे को पासी और खटिक का फर्क सिखा दिया. तुम्हारी सोच इतनी गिर गयी कि तुमने चतुर्वेदी को असली पंडित माना और द्विवेदी को कम जानकार मानने लगे. जात कम पड़ने लगी तो तुमने सामुदायिक बंटवारा भी शुरू कर दिया. बंगाली कायस्थ, यूपी के कायस्थ, मराठी कायस्थ सब अलग हो गए, वो सिर्फ बंगाली, गुजरती या मराठी बन गए.
तुमने अपनी सहूलियत के लिए किसी भी जाती को पिछड़ा, या नीच बना दिया और उस जाती को अपना मल उठाने पर मजबूर कर दिया और फिर तुम्ही ने उसे छूने से भी इनकार कर दिया. लोहे के बर्तन बनाना जिसका हुनर था, तुमने उसकी जात उसके काम से ही तय कर दी और फिर उसे भी खुद से हीन मानने लगे.
तुम्हारी खोखली शान ने जिंदगियां बर्बाद कर दीं. तुम्हारी जात के किसी युवा ने जहां अंतर जातीय विवाह करने का निर्णय लिया, वहां तुमने 'ऑनर किलिंग' का सहारा लेकर प्रेम की बलि चढ़ा दी. तब तुमने नहीं देखा कि ऐसा करने में तुमने किसी इंसान को गंवा दिया.
समाज, परंपरा, संस्कृति, जो तुमने ही बनाई, तुम खुद उसमें उलझ गए और जहां तुम खुद को समाज के लिए कृष्ण बना सकते थे, वहां तुमने ध्रितराष्ट्र बनना उचित समझा. जाती के आधार पर प्रेम का गला घुटता रहा, हत्याएं होती रहीं, स्थिति बिगड़ती रही पर तुम अंधे बने रहे.
तुम कहोगे कि क्या अब शूद्रों को सर पे चढ़ा कर बैठा लें? सर पर तो तुमने अपने परिवार को भी नहीं बैठाया है तो किसी और को बैठने की भी ज़रुरत नहीं है, ज़रुरत तो उनको बराबरी का दर्जा देने की है.
तुम अब कहोगे की ये तो सदियों से चला आ रहा है. हमने थोड़ी शुरू किया है. हम तो इसी के साथ जियेंगे, इसी के साथ मरेंगे, हमारे बाद जिसको जो करना हो वो करे.
अगर ध्यान हो तो सदियों से सती प्रथा भी चली आ रही है, क्या उसे भी मानते हो? मानते हो तो बैठा दो अपनी बेटी, बहु या माँ को किसी चिता पर जिंदा जलने के लिए! करा दो अपनी 5 साल की बेटी का विवाह किसी 30 साल के अधेड़ से!
ज़रूरी नहीं जो सदियों से चला आ रहा है वो सही है. वक़्त के साथ हर चीज़ बदलती है, यही प्रकृति का नियम है. 100 साल पहले जो समाज था, आज वैसा नहीं रह सकता और क्यूंकि तुम और मैं मिल कर समाज बनाते हैं इसलिए तुम और मैं भी वैसे नहीं रह सकते जैसे हमारे पूर्वज 100 साल पहले थे. समाज हर एक इकाई के योगदान से बदलेगा. हर किसी को राजा राम मोहन रॉय बनना पड़ेगा.
तुम्हें आरक्षण ख़त्म करना है ना? तो कराओ अपने बच्चों का अंतरजातीय विवाह, तब जाकर समाज की सारी दीवारें टूटेंगी क्यूंकि तब बनेगी सिर्फ एक जाती, मानवता की! और अगर ऐसा नहीं कर सकते तो आरक्षण के खिलाफ आवाज़ उठाने का भी तुम्हें कोई हक नहीं है.
हाँ मैं मानता हूँ कि कई सालों पहले निचली जातियों की जैसी स्थिति थी, वैसी अब नहीं है. निचली जाती के कई लोग आर्थिक रूप से सशक्त हो चुके हैं, पढ़े लिखे हैं और उन्हें आरक्षण की ज़रुरत नहीं है. अगर आर्थिक आधार पर आरक्षण दिया जाये तो स्थिति बेहतर हो सकती है मगर आज भी निचली जाती की बड़ी संख्या अपनी स्थिति में सुधार के लिए रास्ता देख रही है.
समलैंगिकता को अपराध ना मान कर सर्वोच्च न्यायलय ने भारत को बेशक आज़ादी दिलाई है परा अभी भी जाती के बंधनों में बंधे इस देश को आज़ादी चाहिए. क्या हो अगर सरकार कानून बना दे की अब हर कोई सिर्फ अंतरजातीय विवाह करेगा? तब एक ऐसे भारत का निर्माण होगा जहां प्रेम और हुनर के बलबूते हर समस्या का समाधान निकलेगा. तब तुम अपने नेता उसकी जात के आधार पर नहीं उसके काम के आधार पर चुनोगे. तब तुम किसी को चिढ़ाने के लिए चमार या तेली नहीं कहोगे. तब तुम एक बड़ी आबादी को नाकाम होने से बचा लोगे. तब वर्गों का फर्क नहीं रहेगा.
मगर ऐसा होगा नहीं. क्यूंकि कोई बदले ना बदले, तुम तो बिलकुल नहीं बदलोगे. तुम अपनी बिरादरी द्वारा बनायीं गयी काल कोठरी के अंदर ही सड़ोगे, समाज गया तेल लेने, और तुम्हारी इसी नाकामी का फायदा नेता उठाएंगे. तुम्हारी इसी कमज़ोरी को अपनी शक्ति बनायेंगे. तुम्हे जाती का हवाला देकर तुमसे वोट बटोरेंगे और तुम्हें उसी काल कोठरी में पड़े रहने के लिए छोड़ देंगे. कृष्ण यदुवंशी थे, यादव, तो पंडित होकर तुम अपने से नीच जात वाले की पूजा कैसे कर लेते हो? राम आर्य थे और आर्य पश्चिम एशिया से आये थे, तो राम भारतीय नहीं हुए, भारतीय नहीं हुए तो एंटी-नेशनल की केटेगरी में उन्हें रखा जायेगा या नहीं? मैं तो बस पूछ रहा हूँ, माफ़ करना अगर बुरा लगा हो, तुम्हारी भावनाएं आहात हो गयी होंगी, है ना? आगे की पीढ़ी भी पूछेगी. तब तुम क्या जवाब दोगे या तब भी ध्रितराष्ट्र की तरह मूक हो जाओगे जिस तरह द्रौपदी के चीरहरण के दौरान वो हो गए थे.
इस बारे में ज़रा सोचना. खैर नहीं भी सोचोगे तो क्या फर्क पड़ेगा, तुम तो सवर्ण हो, उसी में खुश होते रहना!
#आशुतोष