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Saturday, 4 May 2019

ब्रांडेड बचपन

जब 10-11 साल के बच्चों से ब्रांड और कीमत के बारे में बात करते सुनता हूँ तो बड़ी कोफ्त होती है। उनसे ज़्यादा उनके परिजनों पर हैरानी होती है जो अपने बच्चों को इतनी छोटी उम्र में ब्रांड और सामान की कीमत बताते हैं। ऐसा कर के हम उन बच्चों की मानसिकता को सही राह नहीं देते जिससे समाज की कई मायनों में हानि होती है।

योनेक्स के बैडमिंटन रैकेट, 200 रुपये वाली पार्कर पेन, 3 हज़ार का बैट, रीबॉक के 2 हज़ार के जूते, 100 रुपये वाली क्लासमेट की कॉपी, 4 हज़ार की जीन्स...परिजन हर वस्तु की कीमत और वस्तु का बाज़ार में कितना महत्व है, इसकी जानकारी दे कर बच्चों को छोटी उम्र में ही मटीरियलिस्टिक बना देते हैं। इससे बौद्धिक विकास की दिशा ही बदल जाती है। जिस उम्र में उन्हें ये प्रश्न करना चाहिए कि रात में सूरज कहाँ छिप जाता है, या फिर चाँद हमारे साथ क्यों चलता है, वो अपने से 3 गुना बड़ी उम्र के लोगों से ये पूछते हैं की आपने जो घड़ी पहनी है वो कौन सी कंपनी की है? मेरे पापा के पास तो 15 हज़ार की फॉसिल की घड़ी है! आपकी की घड़ी तो सस्ते ब्रांड की है!

इस उम्र में बच्चों को जानवरों और पेड़ों से परिचित कराना चाहिए, उन्हें प्यार करना सिखाना चाहिए। बच्चों को खिलौनों के तालाब में फेंकने के बजाए किताबों के महासागर में गोते लगाने के लिए छोड़ना चाहिए। हर मांग को पूरी करने के साथ साथ उन्हें ऐसे लोगों के बारे में भी बताना चाहिए जो अपनी हसरतों को पूरा नहीं कर पाते। अगर ऐसा नहीं किया तो ये बच्चे इंसान या अन्य जीवों से प्यार करना नहीं, सिर्फ भौतिक वस्तुओं और दिखावे से ही प्यार करना सीखेंगे, उन्हें जीवन में अधिक महत्व देंगे।

अब इसमें आप ये तर्क भी दे सकते हैं कि अरे बच्चे ही तो हैं, इतनी चिंताएं लाद देंगे तो बचपन ही खत्म हो जाएगा। तो जनाब बचपन तो आपने उसी दिन खत्म कर दिया था जब आपने उसकी ज़िद पर बेहद महंगा खिलौना उसे दिलाया था और टूट जाने पर उसे ये कह कर डांटा था कि जानते हो कितने रुपये का था!
या फिर आपने उसे रिश्वतखोरी सिखाते हुए ये कहा था कि मेरी बात मान लो तो तुम्हारी पसंद की कार ला कर देंगे।

आप ये भी कह सकते हैं कि बच्चों की अलग अलग रुचि हो सकती है। क्या पता उसे बचपन से ही गैजेट या टेक संबंधी चीज़ों के बारे में जानना पसंद हो, तो उनके बारे में जानने में क्या हर्ज है?
आप भी समझते होंगे कि बच्चों को समाज की कई चीजों की जानकारी कम उम्र में देना ठीक नहीं है। जिस प्रकार फिल्मों में आपत्ति जनक दृश्यों को बच्चों को दिखाने से परहेज़ करते हैं, उसी प्रकार कई जानकारियां ऐसी हैं जो इस उम्र के लिए ठीक नहीं हैं। रुचि विकसित करने के लिए और उस रुचि को पेशा बनाने के लिए बच्चों के सामने बहुत लंबा वक्त पड़ा है मगर बौद्धिक विकास इस उम्र से ही शुरू हो जाता है।

बच्चों को खुद से मोबाइल का लॉक खोल कर गेम खेलते देख कर कुछ पल के लिए खुश तो हुआ जा सकता है मगर अगले ही पल ये सोच कर भी चिंता करनी चाहिए कि वो बच्चा बड़ा हो कर समाज में क्या योगदान देगा।
समाज के निर्माण में हर व्यक्ति खास है और हर इकाई ज़िम्मेदार है। हमें खुद की ज़िम्मेदारी समझनी होगी और बच्चों को समझानी होगी, तभी एक बेहतर समाज निर्मित होगा।
#आशुतोष