13 साल इंग्लिश मीडियम के कॉन्वेंट स्कूल में पढ़ने के बाद भी मेरा लगाव हिंदी से अटूट है। वो इसलिए कि हिंदी मुझे अपनी माँ से विरासत में मिली है। हिंदी मेरी माँ की ज़बान है इसीलिए वो मेरी मातृभाषा है। मेरी ही नहीं, हिंदी पट्टी में रहने वाले बहुतों की मातृभाषा हिंदी है।
अंग्रेज़ी में वो बात नहीं जो हिंदी में है क्योंकि मातृभाषा से अधिक खूबसूरत कोई भाषा नहीं हो सकती। आपकी मातृभाषा मराठी, बंगाली, पंजाबी, गुजराती, तमिल, कन्नड़...कोई भी हो सकती है। ज़रूरी ये है कि आप अपनी मातृभाषा पर गर्व करें। उससे भी ज़्यादा ज़रूरी आज के वक़्त में अपने बेटे बेटियों को भाषा का ज्ञान देना है। दिल्ली एनसीआर में जब से रह रहा हूँ, ये देख रहा हूँ कि लोग अपनी भाषा से कटते जा रहे हैं। दिल्ली के पॉश इलाकों में बड़ी मुश्किल से आपको कोई व्यक्ति अपनी मातृभाषा में बात करते हुए मिलेगा।
पिछले साल अपनी पुरानी कंपनी के एक इवेंट के सिलसिले में दिल्ली के एक बड़े होटल में जाना हुआ था। इवेंट में शामिल होने वाला हर स्पीकर अंग्रेज़ी में ही बात कर रहा था। दर्शक भी आपस में अंग्रेज़ी में ही बात कर रहे थे। इवेंट के अंत में पेटीएम कंपनी के मालिक विजय शेखर भी स्पीकर के तौर पर शामिल हुए और उन्होंने अपनी आधी से ज़्यादा बात हिंदी में रखी। लोग चौंके, फिर उनकी बातों पर तालियां पीटने लगे। दूसरों के सेशन से ज़्यादा विजय शेखर के सेशन की चर्चा हुई। वो इसलिए कि उन्होंने अपनी भाषा में संवाद किया...जिससे दर्शक उनसे अधिक जुड़ सके। मातृभाषा में बात करने से नज़दीकियां झलकती हैं। अंग्रेज़ी में औपचारिकता महसूस होती है। वही औपचारिकता जो विजय शेखर के सेशन से पहले के सेशन में दिखाई दे रही थी।
वैसे यहां गौर करने वाली बात ये भी है कि अगर विजय शेखर की जगह कोई आम आदमी ऐसी जगह पर हिंदी में बात करता तो लोग हेय दृष्टि से देखते। वो इसलिए आज कल लोगों को अपनी भाषा में बात करने में शर्मिंदगी महसूस होती है। कभी कभी सोचता हूँ कि क्या उन्हें अपनी माँ से भी बात करने में शर्मिंदगी होती होगी...शायद नहीं...तो मातृभाषा में बात करने में क्यों शर्म महसूस होती है! ये दुर्भाग्यपूर्ण है। सिर्फ अगली पीढ़ी के लिए ही नहीं, हमारे लिए भी दुर्भाग्यपूर्ण है कि हम अगली पीढ़ी तक भाषा की विरासत को नहीं बढ़ा पा रहे हैं।
अलग अलग भाषाओं का ज्ञान होना अच्छी बात है। अंग्रेज़ी एक ग्लोबल ज़बान है, उसे सीखना भी आवश्यक है मगर अपने देश और अपने क्षेत्र में रह कर कोई दूसरी ज़बान बोलना ठीक नहीं है।
#आशुतोष
This is my personal blog about my personal thoughts. Every person has a world deep inside him, the feelings and emotions which a person never share, even with himself or herself. The world which knows everything about that person, the world which no one else can see, the world which is buried deep inside our soul, its 'The World Within'
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Saturday, 14 September 2019
हिंदी दिवस
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