भारत का सबसे बड़ा घोटाला 15 अगस्त और 26 जनवरी के दिन होता आया है जिसका मैं साक्षी रहा हूँ। स्कूल में मिलने वाली दो चॉकलेट कैसे 3, 4 या 5 में तब्दील हो जाती थी, ये ना ही कोई शराब कारोबारी समझ सकता है और ना ही किसी हीरा कारोबारी को इसका हुनर पता है। ये सिर्फ उन कुछ चुनिंदा आस्तीन के सांपों को पता है जो स्वतंत्रता दिवस या गणतंत्र दिवस के दिन दोस्त बनकर स्कूल में प्रवेश करते थे और स्कूल में दगा देकर कई चॉकलेटों की डकार मारते हुए घर की ओर प्रस्थान कर जाते थे।
'सावधानी हटी दुर्घटना घटी' का सबसे बड़ा उदाहरण जश्न-ए-आज़ादी के रोज़ नज़र आता था। स्कूल में बच्चों को दो-दो चॉकलेट भेंट की जाती थी। कुछ समझदार साथी उसी वक्त चॉकलेट निपटा देते थे मगर कुछ लड़के घर ले जा कर खाने में विश्वास करते थे। ऐसा नहीं है कि बाहर से चॉकलेट खरीद कर खाना बड़ी बात थी। मगर पहला तो ये कि लड़के कभी खुद से अपने लिए चॉकलेट जैसी फ़िज़ूल की चीज़ में पैसा इंवेस्ट नहीं करते...(प्रेमिका के लिये खरीदने का मसला अलग है), दूसरा कि लड़कों को अगर फ़िज़ूल की चीज़ भी मुफ्त में मिल जाये तो उसके लिए छीना-झपटी करने में परहेज़ नहीं करते।
'एक का डबल' वाला फार्मूला सिर्फ दोस्त की चॉकलेट चोरी कर के ही नहीं सिद्ध होता था। लड़कों में टीचर को भी डबल क्रॉस करने का हुनर कूंट-कूंट कर भरा था।
'रोल नंबर 13, हैव यू गॉट द चॉकलेट्स?' लाइट की स्पीड से भी तेज़ इस सवाल का जवाब 'नो' में आता था। इधर नो निकला और उधर तीसरी चॉकलेट मिल गयी। हालांकि टीचर को गलती से भी याद रहा कि वो उस लड़के को चॉकलेट दे चुके हैं, तो पहले दी हुई चॉकलेट भी ज़ब्त कर ली जाती थी।
घोटाले का दूसरा तरीका पहले से भी ज़्यादा इंटरेस्टिंग था। कई बार टीचर क्लास के मॉनिटर को चॉकलेट बांटने का ज़िम्मा दे देते थे, बिल्कुल वैसे ही जैसे सरकारी बाबू ठेका अलॉट करते हैं। लड़के लाइन से अपनी चॉकलेट लेने आते थे मगर घपलेबाज़ी में महारथ हासिल कर लिए कुछ साथी चॉकलेट लेने के बाद घूम कर उसी लाइन में फिर से लग जाते थे। इस केस में दो चीज़ें होती थीं...अगर मॉनिटर ने चॉकलेट बांटते वक़्त सिर्फ लेने वालों का हाथ देखा था और शक्ल नहीं तो फिर से उसी शख्स को चॉकलेट मिल जाती थी और अगर चेहरा देख भी लिया तो कूंटे जाने के डर से वो मुंह नहीं खोलता था। बहरहाल, आखिर के 15 बच्चों के लिए एक भी चॉकलेट नहीं बचती थी तो एसबीआई के हताश कर्मचारी की तरह मॉनिटर को आरबीआई को इस घोटाले की जानकारी देनी पड़ती थी। फिर एसबीआई पर जुर्माना के तौर पर उसके हिस्से की चॉकलेट में कटाई की जाती थी और तत्काल प्रभाव से लड़कों की डेस्क पर छापे मारे जाते थे। उसके बाद जो हश्र होता था उसका ज़िक्र करने की शायद आवश्यकता नहीं है।
कई बार ऐसा भी होता था कि 15 अगस्त या 26 जनवरी को लड़के एब्सेंट रहते थे तो उनके हिस्से की चॉकलेट शेयर्स के रूप में मौजूद लड़कों को बांट दी जाती थी। उस दिन स्कैम होते होते रह जाता था।
आप सभी को स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनाएं 🇮🇳
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