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Tuesday, 21 August 2018

आकाश या पाताल?

मैं आसमान का शौकीन नहीं हूं. आसमान पर चलने से औकात का पता नहीं चलता। मुझे पाताल पसंद है, क्योंकि पाताल हक़ीकत से रूबरू कराता है. आप जहां रह रहे हैं, वो भी पाताल ही है. आप को क्या लगता है कि पाताल सिर्फ गर्म तेल, कांटेदार सेज और गर्म ज्वालामुखी ही है? अपने चारों ओर नज़र घुमा कर देखिए, जिस समाज में आप रह रहे हैं वो भी किसी पाताल से कम नहीं है। कभी किसी का बलात्कार होते देखा है? कभी किसी की पीट-पीट कर हत्या होते देखी है? कभी किसी को अपने पूरे परिवार को अन्धविश्वास का हवाला देकर सूली पर चढ़ाते देखा है? अगर नहीं, तो शायद आप अनभिज्ञ हैं, आपको पता नहीं पाताल क्या है। अगर आप ऐसे समाज में आकाश के सपने देखते हैं तो आप लाश हैं, चलती फिरती लाश.
जॉन एलिया ने कहा है, ' क्या तकल्लुफ करें यह कहने में, जो भी खुश हैं, हम उनसे जलते हैं!'
जलना तो लाज़मी है, क्यूंकि जिसको एहसास है कि वो पाताल में रह रहा है, वो आज के समय में ज्वलनशील है. अपनी मस्ती में जीते-जीते आप अपने होने का मकसद भूल जाते हैं। आप खुश होने का ढोंग करते हैं, शायद कुछ पल के लिए खुश हो भी जाते हों मगर वो क्षण मात्र के लिए है। आप खुश हैं क्योंकि आप जीवित हैं, या खुश हैं के अभी तक आप मरे नहीं। मगर असली ग़म तो इस जीने और मरने के बीच ही है। और जिस पाताल की बात मैं कर रहा हूँ, वो भी इस मरने और जीने के बीच समाया है।
वैसे देखें तो इस पाताल के मूल्य रूई की तरह हलके हो चले हैं पर सुई की तरह चुभने लगे हैं. आप हवाला देते हैं की क्या कीजियेगा, समाज ही ऐसा है! अजी समाज कौन है? मेरे और आप जैसे असंख्य शुक्राणु जो किसी अंडाशय से मिलाप के लिए भटक रहे हैं। इस मिलाप से उत्पत्ति होती है, द्वेष की और नफरत की। आपने सोचने की ज़हमत उठायी की ऐसा क्यों है? बात यह है कि आपकी भावनाएं आपके कद से बड़ी हो चुकी हैं. सुई की तरह चुभने लगी हैं. आप दूसरों को चोट पहुंचाने में हिचकते नहीं मगर आपकी महज़ भावनाएं ही आहत हो जाएं तो आप छटपटाने लगते हैं। वैसे छटपटाना भी बेहतर है, कम से कम इस बात का सबूत है कि आप ज़िंदा हैं। मगर ध्यान रहे कि छटपटाहट हड़बड़ाहट को जन्म देती है जिससे लड़खड़ाहट पैदा होती है जिससे समाज गिरता है, पंगु बनता है और फिर बच जाता है सपने देखना, आसमान में चलने के।
पर मैं आसमान का शौकीन नहीं हूं क्योंकि, आसमान पर चलने से औकात का पता नहीं चलता!

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