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Wednesday, 29 April 2020

एक अभिनेता जो था, जो है और जो रहेगा!

साल 2020 में बेशक ये साबित हो गया है कि सबसे बड़ा 'मदारी' वो ऊपर वाला है....रह-रह कर ऊपर वाले की बात इरफान खान की आवाज़ में कानों में गूंज रही है,
"तुम मेरी दुनिया छीनोगे, मैं तुम्‍हारी दुनिया में घुस जाऊंगा!"
हमने उसकी दुनिया के साथ जो सुलूक किया, उसने उसका बदला एक महान अभिनेता को अपने पास बुलाकर ले लिया। 
"जो कहूंगा नहीं समझोगे...5, 10, 15 साल बाद शायद कहे का असर होगा...गहरा!"
असर तो होने लगा है। अभी से ही। अब वो जज़्बात से भरी आंखें, वो चीखती खामोशी और असलियत को छूता अभिनय दोबारा देखने को नहीं मिलेगा।
इरफान अभिनेता नहीं जज़्बात हैं, वो जज़्बात जो उन करोड़ों लोगों के मन में कैद है जिनकी शक्ल-सूरत फिल्मों के लायक नहीं है मगर कहीं न कहीं उन्हें खुद को बड़े पर्दे पर जीना है। इरफान ने उन लोगों की परछाई प्रस्तुत की...आम आदमी को बड़े पर्दे पर दर्शाया और शायद आज वही आम आदमी इरफान के जाने से सबसे ज़्यादा दुखी है।
"ये शहर हमें जितना देता है, बदले में कहीं ज्‍यादा हम से ले लेता है"
शहर का तो पता नहीं मगर भगवान ऐसा ही...जो थोड़ा भी हमसे लेता है वो हमारे लिए बहुत होता है।
पान सिंह तोमर, हासिल, डी-डे, मदारी, हैदर, हिंदी मीडियम, लाइफ इन मेट्रो, पीकू...आप फिल्मों का नाम लीजिये और हर बार एक ऐसे इरफान की शक्ल ज़हन में आती है जो पिछली फिल्म से अलग होती है। 
लॉकडाउन के पहले मैंने जो आखिरी फ़िल्म देखी थी वो इरफान की ही अंग्रेज़ी मीडियम थी...और उस फिल्म को देखकर इरफान खान से फिर प्यार हो गया था। 
"टोटल तीन बार इश्क़ किया, और तीनों बार ऐसा इश्क़, मतलब जानलेवा इश्क़, मतलब घनघोर, हद पार!"
मेरे साथ भी कुछ ऐसा ही था...इरफान की तो सभी फिल्में बेहतरीन थीं, मगर मदारी, पान सिंह तोमर और अंग्रेज़ी मीडियम मेरे दिमाग में चिपक गयी हैं। 
इरफान से जुड़ी पहली याद 'हासिल' फ़िल्म की है। फ़िल्म इलाहाबाद विश्वविद्यालय की छात्र राजनीति पर बनी थी इसलिए भी बेहद करीब थी और उसमें इरफान का अंदाज़... 
"...और जान से मार देना बेटा, हम रह गये ना, मारने में देर नहीं लगायेंगे, भगवान कसम!"
काश की इरफान रह जाते। अभी उनको और देखना था। उस बड़े कलाकार को बूढ़ा होते देखना था। उनके अंदाज़ पर तालियां पीटनी थीं मगर ये बात भी सच है कि "डेथ और शिट, किसी को, कहीं भी, कभी भी, आ सकती है!"

होनी को कोई नहीं टाल सकता...इरफान हमारे बीच नहीं हैं...अब सिर्फ हैं तो उनकी फिल्में...जिसके सहारे आने वाली पीढ़ी ये जानेगी कि इरफान खान होने के क्या मायने थे। 
रूहदार ने सच ही कहा था, "दरिया भी मैं दरख्त भी मैं, झेलम भी मैं, चेनाब भी मैं...दैर हूँ, हरम भी हूँ...शिया भी हूँ, सुन्नी भी हूँ...मैं हूँ पण्डित!...मैं था, मैं हूँ, और मैं ही रहूँगा..."
#Ashutosh

Saturday, 18 April 2020

मेरा पहला सफेद बाल

सुबह शीशे के सामने खड़े हो कर ब्रश करना इसलिए भी ज़रूरी होता है जिससे चेहरे को अलग-अलग एंगल से देर तक देखा जा सके। आज की सुबह भी अलग नहीं थी। ब्रश करते-करते चेहरे के तमाम हिस्सों पर नज़र दौड़ रही थी कि तभी सर पर नज़र पड़ी और मैं हैरान रह गया! माथे के ठीक ऊपर वाले बालों पर एक पतला, कमज़ोर सा बाल सफेद दिखाई दे रहा था। पहली नज़र में तो लगा कि लाइट शायद इस अंदाज़ से पड़ रही होगी कि बाल चमक रहा होगा। मगर मामला गंभीर था तो अंदाज़े पर रफा-दफा करना ठीक नहीं था। उसी वक़्त ब्रश करने जैसे निरर्थक कार्य को बीच में ही समाप्त कर के मैंने बड़े ही एहतियाद से बाल को परखना शुरू किया। उस पतले, कमज़ोर और महीन बाल का रंग वाकई सफेद हो चला था। 
क्या मैं बूढ़ा हो रहा हूँ? क्या अभी से सारे बाल पक जाएंगे? सवाल तो मन में कई उठ रहे थे मगर उन सवालों के बारे में सोच कर चिंता नहीं हो रही थी। खयाल आया कि जॉर्ज क्लूनी की तरह सारे बाल सफेद कर लेंगे। या डॉक्टर स्ट्रेंज की तरह दोनों तरफ की कलम के आसपास के बालों को सफेद छोड़ कर बाकी के बालों को काला रंग लिया जाएगा। 
कुछ वक्त बाद लगा कि अभी उम्र ही क्या है, इतनी जल्दी तो बाल नहीं सफेद होना चाहिए था, फिर ध्यान आया कि स्कूल के दौरान ही कुछ दोस्तों के बाल सफेद हो गए थे। 
वैसे देखा जाए तो बाल हमेशा के लिए सफेद हो जाना कितना अजीब है ना! आधी ज़िंदगी बाल के जिस रंग की आदत हो गयी थी अब बाल वैसे न रह कर उस रंग के हो जाएंगे जिससे लोग आपको बुज़ुर्ग समझने लगेंगे। एक बार गुरुजी ने कहा था कि बाल पक जाने का अलग आनंद होता है, मगर अब महसूस हो रहा है कि उन्होंने ये तो बताया ही नहीं कि जब सर पर पहला सफेद बाल दिखाई दे तो उसे अपनाया कैसे जाए। ज़ुल्फ़ों पर हाथ फेरने में डर बना रहेगा कि कहीं वो एक बाल टूट गया और उससे सारे बाल सफेद हो गए तो! 
कुछ देर के लिए अजीब सा एहसास होता रहा। न जाने किस बात का...फिर बालों को झाड़ने के बाद वो सफेद बाल आसानी से नज़र नहीं आया इसलिए उस पर से ध्यान हट गया। वैसे अब मैं भी आधिकारिक रूप से कह सकता हूँ कि मैंने धूप में बाल नहीं सफेद किये हैं!
#आशुतोष

सही-गलत के बीच फंसा धर्म

हो ये रहा है कि पूरी शिद्दत से गलत को गलत कहा जा रहा है और साथ ही ढिंढोरा पीट-पीट कर सही को सही भी कहा जा रहा है...मगर समस्या ये है कि खुद की गलत मान्यताओं या कृत को कोई गलत नहीं कह रहा और दूसरे की मान्यताओं या कृत को गलत ठहराने की होड़ लगी है। 
अपनी गलती को ढकने के लिए सामने वाले की गलती को उजागर किया जा रहा है। खुद की गलती को छोटा बताने के लिए दूसरे की गलती को बड़ा बनाया जा रहा है। कहा ये जा रहा है कि अकेले मैं ही गलत नहीं हूं तुम भी गलत हो...और इस उधेड़बुन में कोई ये ध्यान नहीं दे रहा कि दो गलत चीज़ों को जोड़ कर सही चीज़ की उतपत्ति नहीं होगी। 
तुम अगर हिन्दू हो और मुसलमान की गलती ढूंढ रहे हो या फिर तुम मुसलमान हो और हिन्दू की गलती ढूंढ रहे हो तो तुम वाकई अंदर से खोखले हो क्योंकि दूसरे पर सवाल उठाने से पहले अगर तुम खुद ही अपनी कमियां और खामियां नहीं देख पा रहे तो तुम कट्टरपंथी विचारधाराओं के द्वारा मूर्ख बनाये जा चुके हो। 

ये सच है कि हर किसी के लिए उसका धर्म सम्मानजनक है, इसलिए किसी और के द्वारा बार बार उसपर सवाल उठाया जाना गलत है, लेकिन तुम खुद भी अपने धर्म और उसके गलत कृत पर अगर सवाल नहीं उठा रहे तो समझ जाओ कि तुम धर्म के चंगुल में फंस चुके हो।
खुद को अपने धर्म का रक्षक समझना बंद करो! और बंद करो अपने ज़हरीले दिमाग के साथ सोशल मीडिया के अखाड़े में कूदना! 5-6 इंच के मोबाइल फोन से तुम अपने 'धर्म' को बचाने के लिए जिस धर्म युद्ध को इस सोशल मीडिया पर छेड़ रहे हो उसकी ज़रूरत नहीं है! बंद करो ये सोचना कि धर्म खतरे में है क्योंकि जिस धर्म की गलत तस्वीर तुम्हारे प्रिय नेताओं ने तुम्हें दिखाई है वो असल धर्म नहीं है! तुम्हें अगर धर्म के लिए कुछ करना है तो घर में बैठकर एक दूसरे के धर्म पर कटाक्ष करना बंद करो! उस धर्म के लोगों के उत्थान के लिए कुछ करो! तुम्हें अपने धर्म की अच्छाई बताती एक फेक न्यूज़ मिलती है और तुम उसे झटपट सोशल मीडिया पर शेयर कर देते हो ताकि तुम दूसरे धर्म वाले पर हमला कर सको और ये बात सको कि तुम्हारा धर्म उसके धर्म से कितना महान है! 
ये धर्मों की तुलना करने से, और एक को दूसरे से बेहतर बना लेने से तुम क्या हासिल कर लोगे? राजनीतिक दलों ने हमें बिना बताए अपने अपने धर्मों का 'रक्षक' बना दिया है...विश्वास मानो धर्म को ऊंचा या नीचा दिखाने का ये खेल इतना बुरा है कि इसका कोई अंत नहीं है क्योंकि कोई भी दूसरे पर लांछन लगाने का मौका नहीं छोड़ना चाहता। 

क्या वाकई हमें अपने धर्म को लेकर इस प्रकार संवेदनशील होने की ज़रूरत है और इस कदर कि ज़हर फैलाते फैलाते हम खुद ज़हर बन जाएं!
खतरे में धर्म नहीं इंसान है और इस देश का हर नागरिक जिसने आंखें मूंद रखी हैं। 
अक्सर फेसबुक पर हम ये तंज़ मारते हैं कि 'अब फलाने धर्म के लोग चुप रहेंगे' या 'अब फलाने धर्म के लोग इसपर कुछ नहीं बोलेंगे'...सोच कर देखिए तो आप पाएंगे कि आप वाकई चुप हैं, क्योंकि आप सही चीज़ों के खिलाफ सवाल नहीं खड़ा करते! आप बेरोज़गार हैं तो आप क्यों नहीं आवाज़ बुलंद करते कि काबिल होने के बावजूद आपको नौकरी क्यों नहीं मिल रही! आप आवाज़ क्यों नहीं उठाते कि आपके शहर की सड़कें क्यों नहीं बनती! आपके धर्म के नेता आपको ये कह कर भड़काता है कि आप खतरे में हैं तो आप उससे ये सवाल क्यों नहीं पूछते कि अगर हमने तुम्हें चुना तो तुम हमें खतरे से कैसे बाहर निकालोगे? मगर ये सवाल तो काफी उलझे हुए हो जाएंगे! आपको अगर धर्म पर ही सवाल करना है तो अपने अपने धर्मों पर नज़र क्यों नहीं डालते! क्यों नहीं पूछते कि हमारे धर्म में ये जो कृत हो रहा है वो क्यों हो रहा है....मगर नहीं! आपको सिर्फ लड़ना है, दूसरों पर सवाल खड़े करने हैं और फिर सोचना है कि देश तरक्की क्यों नहीं कर रहा! देश इसलिए तरक्की नहीं कर रहा क्योंकि आप खुद को बदलना नहीं चाह रहे। आप राजनीतिक दलों की कठपुतली बने रहना चाहते हैं। आप अगर किसी भी पार्टी के अंध समर्थक हैं या अंध विरोधी हैं तो आप भी भक्त की ही श्रेणी में आते हैं, इसलिए खुद को भी ये उपाधि दे दीजिएगा। 
अंत में सबसे महत्वपूर्ण बात, आप देश में रहते हैं, अपने नेता चुनते हैं इसलिए उन्हें आपके जीवन को बेहतर करने का ज़रिया बनने दीजिये, आप उनकी राजनीति चमकाने का ज़रिया मत बनिये...रही बात धर्म की, तो ये शाश्वत सत्य है कि व्यक्ति पैदा होते के साथ ही धर्म में बंध जाता है मगर इसके ये मायने नहीं हैं कि आप मानवता भूल जाएं!
Jai Hind!
#Ashutosh