यार समझने की कोशिश करो, क्योंकि अब अगर तुम नहीं समझे तो बहुत देर हो जाएगी। ये मसला कभी हिन्दू मुसलमान का था ही नहीं, ना ही किसी दूसरे धर्म, जाती,समुदाय से जुड़ा है। उन्हें सिर्फ सत्ता पर काबिज़ होना है, उन्हें देश में अपनी पैठ जमानी है और वो बखूबी कर रहे हैं, जानते हो कैसे? तुम्हारी और मेरी छाती पर चढ़ कर, हम सब को कीड़े समझ कर, जिसकी जान की कोई कीमत नहीं होती, जिसे कभी भी मसला जा सकता है। तुम मच्छर बन कर ज़रा सा भिनभिनाओगे और वो तुम्हें कुचल देंगे, वो ये नहीं देखेंगे कि तुम हिन्दू हो या मुसलमान। वो सिर्फ तुम्हारा खून बहाएंगे, और यकीन मानो दोस्त, दोनों का खून लाल ही होगा।
तुम जानना चाहते हो कि हक़ीक़त क्या है? ज़रा अपने आप को देखो और खुद से पूछो, क्या वाकई तुम अपने आप में समाए हो या किसी और के बनाये हुए इंसानी पुतले में महज़ घुसे हो जिसके ऊपर चमड़ी तो तुम्हारी है पर अंदर की रूह किसी और के द्वारा घुसेड़ दी गयी है।
याद करो जब तुम स्कूल-कॉलेज में थे, याद करो जब तुम किन्हीं कारणों से टिफ़िन नहीं ला पाते थे, तब तुम्हारा दोस्त तुम्हारे साथ अपना टिफ़िन बांटता था, क्या तब तुमने कभी ये जानने की ज़हमत उठायी की वो रोटी का टुकड़ा हिन्दू के घर का है या मुसलमान के घर का? तुम्हारे पैसे के खरीदे हुए समोसे को झपटने के लिए जब दस हाथ एक साथ समोसे की थैली में अंदर घुसते थे तो कभी ये सोचा कि हिन्दू का हाथ है या मुसलमान का?
जब परीक्षा में जवाब समझ नहीं आता था तब इधर उधर जवाब ढूंढने की उम्मीद से नज़र दौड़ाते थे तो ये सोचा था कि सिर्फ हिन्दू या मुसलमान के जवाब को सुनोगे, अन्य को अनसुना कर दोगे?
आज जब तुमने सोचने-समझने की शक्ति अपने अंदर पैदा कर ली है, तो तुम एक दूसरे को धर्म और जात से पहचानने लगे हो। घंटों फेसबुक पर किसी पुराने दोस्त से राजनीतिक मुद्दे पर बहस कर रहे हो, और उस बहस में दोस्ती की मर्यादाओं को लांघ कर एक दूसरे पर व्यक्तिगत हमला कर रहे हो और फिर उन्हीं दोस्तों को धर्म और जाति के नाम पर बांट कर अलग थलग हो जा रहे हो।
तुम असली खेल समझ ही नहीं पा रहे क्योंकि तुम किसी भीड़ में चल रही भेड़ की तरह बन गए हो जो बिना सर ऊपर उठाए, आगे वाली भेड़ के पीछे पीछे चली जाती है। कौवा कान काट कर ले गया, तुम कौए के पीछे भागने लगे, कान छू कर देखा ही नहीं।
वो लोग जो चाहते थे, तुम वो बन चुके हो, 'भक्त'।
तुम बीजेपी के भक्त हो, तुम कांग्रेस के भक्त हो, तुम सपा, बसपा, कम्युनिस्टों के भक्त हो। किसी ने तुम्हें एक परिवार का फैन बनाया, किसी ने व्यक्ति का फैन बनने पर मजबूर कर दिया, फिर उस व्यक्ति और परिवार ने तुम्हें उनकी पार्टी का पैरोकार बना दिया, फिर उस पार्टी ने खुद को हिंदुत्व, इस्लाम, दलित, अगड़े, पिछड़े से जोड़ कर तुम्हारे सामने आधुनिकता और विकास के सभी रास्ते बंद कर, धर्म, और कट्टरता के ऐसे रास्ते खोल दिये जो आगे जा कर बंद हो जाते हैं। अनभिज्ञता का अंधेरा मिटाने के लिए जिस धर्म को बनाया गया था, उन्होंने उसी धर्म से तुम्हें डराना शुरू कर दिया। तुमको उकसा कर तुमसे मंदिर तुड़वाये, मस्जिद तुड़वायीं, और इस बीच जो सबसे बड़ी चीज़ टूटी वो थी एक दूसरे का भरोसा। सच कहूं तो ये सब तुमने जानबूझ कर नहीं किया, क्योंकि तुम तो अंधे बने रहे। उन्होंने तुम्हें यारों दोस्तों से भिड़ा दिया, आंगन का बंटवारा करवा दिया, और तुम अंधे बने रहे। तुम्हें पता ही नहीं चला, किसी राजनीतिक पार्टी या किसी नेता से मोहब्बत कब जुनून बन गयी, जुनून से भक्ति और कब राजनीतिक पार्टी या विचारधारा के लिए यही भक्ति, कट्टरता के कगार पर पहुँच गयी।
तुम्हें एहसास भी नहीं हुआ और मोदी या बीजेपी को सपोर्ट करना, हिन्दू होने की या देश भक्त होने की निशानी हो गयी और कांग्रेस या किसी अन्य पार्टी को सपोर्ट करना मुसलमान और देशविरोधी पहलू बन गया। जैसा राजनीतिक पार्टियों ने तुम्हें बनाया, तुम वैसे बन गए। समाजवाद या वामपंथ जो इंसानी जज़्बातों पर बुनी हुई विचारधारायें थीं, तुमने उसमें भी राजनीति को घुसा दिया। विचारधारा तो छोड़ो, तुमने रंगों, जानवरों और शमशान-कब्रिस्तान को भी धर्म और राजनीति से पाट दिया।
तुम्हें चारों ओर असहनशीलता दिख रही है ना? हाँ दोस्त, असहनशीलता वाकई है, पर इसे पैदा करने में तुम भी ज़िम्मेदार हो। ज़रा अगल बगल गौर कर के देखो। तुम्हारी कट्टरता से किसी को डर लग रहा है, कोई बात कहने में डर रहा है कि जहां उसने कुछ बोला तहां उसपर भाजपाई या कांग्रेसी का ठप्पा लगा। जहां उसने किसी नेता या पार्टी की आलोचना की तहां उसे हिन्दू और मुसलमान बना दिया गया।
तुम्हें इन सबके बीच ये भी ध्यान नहीं रहता कि सोशल मीडिया या किसी सभा में, अपने दोस्तों और जानने वालों से बहस के दौरान तुमने जो अपने इंसान होने की गरिमा गिराई, उसमें तुम्हारी पीठ थपथपाने कोई भी नेता नहीं आने वाला, ना ही वो तुम्हारे लिए सरकारी व्यवस्थाओं को दुरुस्त करने वाला है, शायद उसे पता ही नहीं कि तुम मौजूद हो, जो उसकी पूजा करते हो, वो तो तुम्हें बेवकूफ भीड़ ही समझता है जिसे उल्लू बना कर वोट लेना उसका काम है और यकीन मानो, ये काम वो बखूबी कर रहा है।
किसी के दादा ने इसी देश में हल जोता है, किसी के पिता ने इसी देश में सब्ज़ियों की दुकान लगाई है और उसी को तुम बात बात सिर्फ इसलिए पाकिस्तान भेज देते हो क्योंकि वो मुसलमान है। अरे मई की किसी रात में तुमने भी लाइट कटने पर पसीने से तर बतर होते हुए व्यवस्था को कोसा है, तुमने भी तेल के बढ़ते दामों को देख कर सरकार को दुहाई दी है, तुमने भी सड़कों पर पानी से भरे गड्ढे में गिरने के बाद किसी नेता को गाली दी है..... और उसने भी शहर के सबसे प्रसिद्ध स्वादिष्ट व्यंजन को खाने के बाद अकसर कहा है कि ये तो मेरे शहर से बेहतर कहीं नहीं मिलता। तो फिर किस अधिकार से तुम उसे पाकिस्तान भेज देते हो?
ये ज़ुबान तुम्हारी नहीं, उन नेताओं की होती है जो तुम्हारे मुंह में अपनी ज़ुबान ठूंसते हैं।
तुम अपने दोस्तों को भी अब सावरकर की औलाद, मोदी के ग़ुलाम कह देते हो, मगर भूल जाते हो कि कभी किसी दौर में तुम दोनों साथ मिलकर एक ही युवती को पसंद करते थे, और अपनी पसंद पर खुश होते थे। तुम्हारे अंदर किसी नेता, या कमल के फूल के लिए जो नफरत है ना, वो तुम्हारी खुद की पैदा की हुई नहीं, दूसरे के दिमाग की उपज है जिसे फर्क नहीं पड़ता कि इसका तुम्हारे जीवन पर क्या असर पड़ेगा।
चुनाव पास आ रहे हैं दोस्त, सोशल मीडिया या अन्य मीडिया की करतूत को पहचानो। मीडिया का कुछ हिस्सा इस कैकई रूपी राजनीति की मंथरा है और ये दोनों एक दूसरे के पिछलग्गू! सोचने समझने की शक्ति पैदा करो, खुद के लिए सही गलत का निर्णय लेना तुम्हारा काम होना चाहिए, मीडिया या किसी सत्ता पर बैठे या सत्ता पाने के भूखे लोगों का नहीं। अगर पार्टियां गठबंधन कर सरकार बना सकती हैं तो हम गठबंधन कर सरकार के समीकरणों को बदल सकते हैं। किसी नेता या पार्टी के लिए अपने रिश्तों को ताक पर मत रखो क्योंकि किसी भी नेता को चाहने वाले हज़ार मिल जाएंगे पर तुम्हारा कोई खास तुमसे दूर गया तो नहीं मिल पायेगा। विश्वास करो, बार बार ये कहने से की 'थोड़ा रिसर्च कर के आओ फिर बात करो' वाले बयान से तुम खुद की नज़रों में ज्ञानी दिखते होगे पर असल बात तो ये है कि तुम भी नहीं जानते तुम किस दुराचार को न्योता दे रहे हो। किस पार्टी को वोट देना है वो तुम तय करो, पर अपने नाम के आधार पर नहीं, उनके काम के आधार पर क्योंकि तुम चाहे मोहन हो या मोहम्मद, देश तुम्हें ही बचाना है।
#आशुतोष
This is my personal blog about my personal thoughts. Every person has a world deep inside him, the feelings and emotions which a person never share, even with himself or herself. The world which knows everything about that person, the world which no one else can see, the world which is buried deep inside our soul, its 'The World Within'
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Tuesday, 22 May 2018
आओ, हिन्दू और मुसलमान की बात करें
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