लेखक: आशुतोष अस्थाना
उन्होंने अपने आप को सँभालते हुए कहा, “तुम दोनों को गाड़ी धीमे चलानी चाहिए थी,
मुझे अभी बहुत दर्द होरहा है, सिर्फ तुम्हारी वजह से!” उन्होंने गुस्से में लेकिन
फिर भी थोड़ा धैर्य से बोला. “हाँ साले देखा कितना दर्द होरहा है भाई साहब को! चल
अब निकाल पैसे इनको डॉक्टर को दिखाना होगा”, एक आदमी ने गुस्से से कहा. “अंकल मेरे पास पैसे
नहीं हैं, आप प्लीज़ बुलादीजिये भैया को वो देदेंगे!”. फिर से फ़ोन की परेशानी सामने
आई, तभी चाय वाले ने जावेद मियां के फट चुके नए कुरते की जेब की ओर देखा और अचानक
से बोला, “भैया देखा ई भाई साहब के पास हई मोबाइल!” सब ने जावेद मियां की तरफ देखा
और बिना उनसे पूछे उनके जेब में से मोबाइल निकाल लिया. “हेल्लो! भैया जल्दी यहाँ
आजाइए कुछ रुपये लेके, जल्दी, जल्दी!!!” उस लड़के ने डरी हुई आवाज़ में उस चौराहे का
नाम बताया और फ़ोन रख दिया. जावेद मियां के कुछ समझ में ही नहीं आरहा था की आखिर
होक्या रहा है, वो बस सहमे से सब कुछ देख रहे थे. बिचारे सोचने लगे जब बेग़म को पता
चलेगा की नया कुर्ता फट गया है तब तो वो उनकी जान लेलेगी, दिन भर कुछ न कुछ सुनाती
रहेगी, अब तो उनका कुछ नहीं होसकता.
तभी उनकी नज़र उनकी प्यारी मोटरसाइकिल पे पड़ी,
बिचारी सड़क के एक कोने में पड़ी थी, उसकी हेडलाइट टूट चुकी थी, और उसमें भारी
नुकसान हुआ था. उसको देखते ही उन्हें और गुस्सा आने लगा, तुरंत उन्हें उन लड़को को
थप्पड़ मारने की इच्छा हुई! जैसे ही लड़को की तरफ ध्यान से देखा तो गुस्से को दबा के
शांत होगए सोचने लगे की दिखने में तो दोनों उनसे ज़्यदा बलवान हैं, कही पलट के मार
दिया तो चेहरा भी ख़राब होजायेगा. अब माहौल थोड़ा ठंडा होरहा था और सब उस लड़के के
भाई का इंतज़ार कर रहे थे. किसी को ख्याल ही नहीं था की जावेद मियां को अस्पताल
लेजायें या उनका हाल पूछ लें. उनमें से एक सज्जन को अब पहले की तरह मज़ा नहीं आरहा
था तो उन्होंने आग फिर से भड़काना शुरू कर दिया. “बताइए साहब ये कोई तरीका होता है,
रास्ते पे चलना दुश्वार होगया है, अरे मैं बिलकुल बगल में खड़ा था अगर गाड़ी थोड़ा सा
बगल में गिरती तो मुझे भी चोट आजाती! इन सालों को तो छोड़ना ही नहीं चाहिए”. थप्पड़
वाले भाईसाहब ने फिर बोला, “अरे छोडेंगे कैसे अब सज़ा तो मिलेगी ही इन लोफरों को
साले सड़क तो अपने बाप की समझते हैं ना!”
थोड़ी देर में उस लड़के का भाई भी आगया, अपने भाई की गलती को ढकने के लिए और
मामला खत्म करने के लिए उसने अपनी गाड़ी से उतारते ही माफ़ी मांगना शुरू कर दिया था.
जावेद मियां को उठने में तकलीफ होरही थी तो वो चाय के ठेले के पास ही पड़ी एक टूटी
बेंच पे लेट गए और आँखें बंद करके अपनी किस्मत को कोसने लगे. “शिराज़ ने गोश्त
बनवाया होगा, शीरमाल भी होगी, पेप्सी भी मंगवाया होगा, सब खराब होगया” जावेद मियां
ने बुदबुदाते हुए अपने आप से कहा. उन लड़कों में और उन चार महापुरुषों में सॉरी और
गाली का दौर चालू था. बात-बात में उन लड़कों की माताओं और बहनों को याद कर लिया
जारहा था. समझ में नहीं आरहा था की दुर्घटना जावेद मियां के साथ हुई थी या उन चार
सज्जनों के साथ. खैर, ऐसा प्रतीत होरहा था मानो वो जावेद मियां के सबसे बड़े
शुभचिनतंक हों. “वो बिचारे भाईसाहब इतने आराम से जारहे थे और ये तुम्हारे भाई ने
उनको गिरा दिया!”. एक आदमी ने लड़के के भाई से बोला. “सर देखिये मैं माफी मांगता
हूँ इन लोगों की तरफ से लेकिन सच में हमारे पिता जी की तबियत खराब है, तो आप लोग
कुछ रुपये लेलीजिये और उन भाईसाहब को डॉक्टर को दिखा दीजिये और हम लोगों को जाने
दीजिये” लड़के के भाई ने स्थिति को संभालते हुए कहा. सब ने इस बात पे सहमति जताई और
पांच हज़ार रुपये मांगे. “पांच हज़ार! इतने रुपये क्यों?” लड़के के भाई ने चौंक कर
बोला. “उनकी हालत देखो बिचारे उठ नहीं पारहे हैं, गाड़ी देखो पूरी चूर-चूर होचुकी
है, इतना तो लगेगा ही”. काफी राय-बात होने पे चार हज़ार रुपये तय हुए. लड़के के भाई
ने वो रुपये थप्पड़ वाले आदमी के हाथ में दिए. शायद अब उनके हाथ की खुजली खत्म होगई
थी. उन लड़को ने अपनी मोटरसाइकिल उठाई और चले गए. लड़के का भाई भी चला गया. सबके
जाने के बाद और समस्या सुलझने के बाद वो चरों शुभचिंतक जावेद मियां के पास गए.
जावेद मियां की न जाने कब आँख लग गई थी. उन्होंने जावेद जी को उठाने की ज़हमत नहीं
की. एक दूसरे को चालाकी भरी नज़रों से देखा और वहा से रफूचक्कर होगए. कुछ देर बाद
जब जावेद साहब की आंख खुली तो देखा वहा कोई नहीं था. चाय वाला अपने ठेले के बगल
में एक ईटे पे बैठा गाड़ियों को आता-जाता देख रहा था. “भैया वो सब लोग कहा गए?”
जावेद मियां ने धीरे से पूछा. “अरे ऊ लोगन तो गए! और जो पैसा मिला था वोहू खागए!”
जावेद मियां चाय वाले को देखते रहगये. अब उन्हें समझ नहीं आरहा था की पहले
बेग़म जी से डांट खाने घर जाये या ठंडा गोश्त खाने दोस्त के यहाँ जाए. जावेद मियां
ने सोचा की ऐसी हालत में फटे कपड़ो के साथ वो दावत में तो नहीं जासकते इसी लिया
उन्होंने बेग़म की डांट से पेट भरने का फैसला किया. अब वो पैर हिला पारहे थे, तो
बिचारे धीरे से उठे और खाली होचुकी चाय की दुकान को निहारा. हिम्मत करके गाड़ी तक
गए और उसे उठा के लुढ़काते हुए चल दिए.



