लेखक: आशुतोष अस्थाना
हमेशा की तरह जावेद मियां घर से निकलते ही पान की दुकान पे गए, एक पान वहीं पे खालिया और एक बाद के लिए रख लिया. अपनी गाड़ी से भी वो बहुत प्रेम करते थे जब उसपे बैठ के वो कही निकलते तो अपने आप को किसी राजा से कम नहीं समझते थे. शिराज़ का घर कुछ दूर था इसीलिए वो गाड़ी थोड़ा तेज़ चला रहे थे. पवन का आनंद लेते, कुछ पुराने गीत गुनगुनाते वो सफ़र का मज़ा लिए चले जारहे थे.
रविवार का दिन होने के कारण सड़कों पे भीड़ कुछ कम थी इसीलिए वो इस बात से खुश थे की उन्हें जाम में नहीं फसना पड़ा. वो अपनी मंजिल के पास पहुँच गए थे. आगे रास्ते में एक चौराहा पड़ा, लेकिन भीड़ कम होने की वजह से वहा कोई पुलिसवाला नहीं था. चौराहे के थोड़ी दूर से ही जावेद जी ने देख लिया था की दूसरी ओर से कोई गाड़ी नहीं आरही है फिर भी उन्होंने अपनी रफ़्तार बिलकुल धीमे करली. वो चौराहे को पर करने ही वाले थे की अचानक बाईं सड़क से एक मोटरसाइकिल पे तीन छात्र उसी तरफ आए उनकी रफ्ता बहुत तेज़ थी, जावेद मियां उनको अपनी ओर आता देख चीखे, “अरे!”, लेकिन बहुत देर होचुकी थी.....धड़ाम!!! दोनों गाड़ियाँ एक दूसरे से टकरागाई.
आसपास के सब लोग भागे और जावेद मियां और उन तीन छात्रों को उठाने लगे. सभी ने जावेद मियां को उठा के पास की चाय की दुकान पर बैठाया. वो दर्द से कराह रहे थे, लग रहा था मानो पैर की हड्डी टूट गई हो! घुटने से खून निकल रहा था और कोहनी से हाथ तक छिल गया था. तभी वहा मौजूद उन भले मानसों ने उन तीन लड़को को दबोच लिया. “साले तीन सवारी चला रहा है!” एक आदमी ने चिल्ला कर गाड़ी चलने वाले लड़के से बोला. तड़ाक!!....तेज़ी से एक चांटा उनमें से एक लड़के के गाल पे पड़ा. भीड़ में होने का यही फायदा होता है, बहती गंगा में कौन हाथ धोले पता ही नही चलता है. “लोफर हैं साले तीन के तीनों!” एक और सज्जन ने बोला. तड़ाक!!!....दूसरा थप्पड़ पड़ा. “अंकल प्लीज़ छोड़ दीजिये, गलती होगई, वो अंकल आते हुए दिखे नहीं”, एक लड़के ने डरते हुए बोला. तभी उनमें से एक लड़का डर के भाग निकला. अब तो वहा जितने लोग थे उन दोनों लड़कों को किसी आतंकवादी की तरह पकड़ लिया. कोई कालर पकड़ा था, कोई हाथ पकड़ा था, कोई बाल पकड़ा था और वो दोनों लड़के बस यही बोल रहे थे की गलती होगई. “अंकल मैं पढ़ने में बहुत अच्छा लड़का हूँ, मैं घूमने-फिरने वाला नहीं हूँ, प्लीज़ छोड़ दीजिये!” उनमें से एक लड़का रोने लगा.
चाय की दुकान पे चाय उबलती जारही थी और वहा सबका गुस्सा उबलता जारहा था. “अरे साले बड़े हरामी लौंडे हैं, छोड़ेंगे नहीं इनको, साले हवा की तरह गाड़ी चला रहे हैं अभी वो आदमी मर जाता तो!!” उन सज्जन की बातों से सबको ध्यान आया की जावेद मियां तो अभी वोही बैठे दर्द से बेचैन हैं. “आप ठीक तो हैं भाई साहब?”, चाय वाले ने पूछा. जावेद मियां के पैर में दर्द होरहा था, बस सर हिला के बता दिया की नहीं ठीक हैं. फिर से सबका गुस्सा भड़क गया, तड़ाक!!!....एक और थप्पड़! इनही सज्जन ने पहले भी दो बार हाथ साफ़ किया था, इस बार उस लड़के ने देख लिया की कौन मार रहा है तो उन्होंने अपने थप्पड़ को जायज़ दिखाने के लिए बोला, “बताइए साहब, ये साले आज कल के लड़के, पढ़ना-लिखना है नहीं बस गाड़ी उठा के दौड़ते रहते हैं, इन दोनों को तो जेल में डलवादेना चाहिए!”, “नहीं-नहीं अंकल, आप कहिये तो मैं आप के पैर छु लूँ, प्लीज़ हम दोनों को जाने दीजिये, देखिये हम दोनों को भी कितनी चोट आई है”, उस लड़के ने अपनी कोहनी से निकलते खून को दिखा कर कहा. तभी दूसरे लड़के ने भी अपना दुखड़ा सुनाना शुरू किया, “अंकल मेरे पापा की तबियत बहुत ख़राब है उन्हें हॉस्पिटल देखने ही हम तीनो जारहे थे बस इसीलिए इतनी तेज़ चलाना पड़ा, आप चाहे तो मेरे भाई को फ़ोन करके पूछ लीजिये”. “हरामखोर अभी इस चौराहे पे बाप को मार रहे हो अगले पे माँ को मारदोगे, इससे अच्छा तुम्ही मर जाते सूअर!!”
गालियों की बारिश होती रही और वो लड़के सफाई देते रहे. ऐसे ही एक घंटा गुज़र गया. अब भीड़ काफी कम होगई थी, जावेद मियां के लिए लड़ने वाले सिर्फ चार ही लोग बचे थे, जिनमे वो थप्पड़ वाले महाशय अभी तक थे, शायद हाथ की खुजली अभी कम नहीं हुई थी. चाय की चुस्की और कुश्ती एक साथ दर्शको को मनोरंजित कर रही थी. “चल साले तैं पुलिस के पास चल, अब बस बहुत बकवास कर लिए!”, एक आदमी ने बोला. “अंकल मैं आप से सॉरी बोल रहा हूँ माफ़ कर दीजिये, आप मेरे भाई से बात कर लीजिये सच में मेरे पापा की तबियत खराब है!”, “चल अच्छा लगा फ़ोन, देखे क्यूँ मर रहा है तेरा बाप, लगा फ़ोन जल्दी!” तभी उस लड़के ने दूसरे से मोबाइल माँगा, लेकिन उन दोनों के मोबाइल में फ़ोन करने के लिए पैसे नहीं थे. तब उनलोगों ने वहा खड़े आदमियों से फ़ोन माँगा लेकिन उन्होंने भी यही बहाना बना कर मना करदिया. “अंकल अच्छा मैं उन अंकल के पैर छु के माफ़ी मांग लेता हूँ”. उनमें से गाड़ी चलाने वाले लड़के ने जावेद जी की तरफ इशारा करके कहा. जावेद मियां सर झुकाए बैठे थे. “अंकल प्लीज़ माफ़ कर दीजिये हम दोनों से बहुत बड़ी गलती होगई, देखिये मुझे भी चोट लगी है, आप कहें तो मैं आपको डॉक्टर के पास ले चलता हूँ लेकिन प्लीज़ अंकल हमे पुलिस के हवाले मत करिए.” उन दोनों ने रोते-रोते कहा. अब सबकी नज़रे जावेद मियां की तरफ टिक गई.
(शेष कहानी अगले भाग में...)
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