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Friday, 23 May 2014

लारा (भाग-2)

                लेखक: आशुतोष अस्थाना   


                (मेरे पहले दोस्त की स्मृति में....)



“हैप्पी बर्थडे मोना बेटा!”, मोना की माँ ने उसके सर पे हाथ फेर कर बोला. मोना जाकर माँ से लिपट गई और उन्हें प्यार करने लगी. मोना एक बहुत प्यारी सी बच्ची थी जो उसी इलाके में रहा करती थी. उसे उसके मोहल्ले के जानवरों से काफी लगाव था, विशेष कर कुत्तों से! उसे जब मौका मिलता तो बहार जाकर भीकू को गोद में लेकर खिलाने लगती या दूसरे कुत्तों को खाना डालने लगती. भीकू भी मोना के साथ खेलता था और प्यार करता था.

मोना आज दस साल की होगई थी और उसके पिता ने उसे एक तोहफा देने का वादा किया था. वो किसी काम से दिल्ली गए थे और वहीं से उसके लिए कोई तोहफा लाने वाले थे. मोना रात से बहुत उत्सुक थी ये जानने के लिए की उसके पिता उसके लिए क्या तोहफा लेकर आयेंगे. पिता जी को आज सुबह ही आना था लेकिन वो अभी तक नहीं आये थे. उनकी देरी मोना को खल रही थी. “पापा कब आयेंगे ?” मोना ने व्याकुल होकर अपनी माँ से पूछा. “परेशान मत हो बेटी, वो आरहे होंगे.” मोना से रहा नहीं गया तो वो बाहर भीकू के साथ खेलने चली गई. अभी वो भीकू के साथ खेल ही रही थी की तभी उसके पिता ने उसे बुलाया. मोना से रहा नहीं गया और भीकू को रख कर वो अन्दर भागी. “पापा! पापा! आप क्या गिफ्ट लाए मेरे लिए?” पापा ने मोना को गोद में उठा लिया और बोले, “मुझे माफ़ करना बेटा मैं कोई तोहफा नहीं लेकर आपाय, मुझे समय नहीं मिला.” पापा की बात सुन कर मोना दुखी होगई और उनकी गोद से उतर कर दूसरे कमरे में चली गई. उसकी आँखों में आंसू आगये. तभी उसके पिता पीछे से आये और धीरे से उसके कान में बोले, “तुम्हारा गिफ्ट, मेरे कमरे में रखा है”. 

मोना वो सुनते ही झूम उठी और भाग कर अपना तोहफा देखने गई. वहा एक जूते का बड़ा सा डिब्बा रखा था जिसमें चारों तरफ से ढेर सारे छेद थे. मोना को समझ में नहीं आया की आखिर उस डिब्बे में क्या है. उसने झट से डिब्बा खोला और देख कर चौंक गई! उसमें एक छोटा सा सफ़ेद और भूरे रंग का कुत्ते का बच्चा था जो सो रहा था. मोना उसे देखते ही ख़ुशी से पागल होगई और उस डिब्बे को उठा कर अपनी माँ को दिखाने ले गई. “मम्मी ये देखो पापा मेरे लिए ये कुत्ते का बच्चा लेकर आए हैं! देखो ये मेरा गिफ्ट है! ये मेरा है!” तभी उसने अपने पिता से पूछा, “पापा इसका नाम क्या है, ये कितने साल का है?”, “ये अभी चार महीने का है बेटा, और तुम इसे कोई भी नाम देदो, तुम्हे जो अच्छा लगे.” मोना ने वो डब्बा नीचे रख दिया और उस छोटे से बच्चे का नाम सोचने लगी. उसके माता-पिता ने उसे काफी नाम सुझाये लेकिन उसे कोई नाम नहीं पसंद आया. काफी देर बाद जब उसके माता-पिता बैठ कर बाते कर रहे थे तो वो उनके पास गई और बोली, “मैंने इसका नाम सोच लिया है!” “अच्छा, हमे भी तो बताओ.” उसकी माँ ने पूछा. तब उसने बड़े ही गर्व और ख़ुशी के साथ बोला, “इसका नाम है, लारा!”

मोना को लारा के साथ खेलने में बड़ा आनंद आने लगा था. वो उसकी खूब सेवा करती, उसे खाना खिलाती, उसे बिलकुल बच्चे की तरह सहेज के रखती थी. लारा भी मोना से बहुत प्रेम करता था और उसकी सारी बातें मानता था. समय बीतता गया और लारा एक वयस्क कुत्ते में तब्दील होने लगा था. वो लैब्राडोर प्रजाति का कुत्ता था. उसके शरीर पे काफी बाल थे और पंजे भी बहुत बड़े थे, पूंछ गोल घूमी हुई थी जिसे वो अपने मुह से पकडे ने कोशिश करता था. उसके अंदर शुरू से ही ख़ास बात थी, जब वो भौंकता था तो मौहल्ले के सारे कुत्ते खौफ में आजते, उन्हें लगता था शायद बाहरी कुत्तों ने हमला कर दिया है!



(शेष कहानी अगले भाग में...)




          

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