लेखक: आशुतोष अस्थाना
मन में एक ख़याल आया, लिखूं अपनी माँ के लिए एक कविता,
जो हो सुन्दर, भावना से युक्त और दर्शाए मेरी माँ की ममता ||
जब बैठा मैं लिखने, आया न मन में कोई ख़याल,
भावनाएं विचार रही थी पुरे ब्रह्माण्ड में और दिमाग होरहा था बेहाल ||
फिर सोचा न हूँ मैं निराला, प्रसाद या पंत,
तो होगा यही बेहतर कि कर दूँ इस कविता का अंत ||
लेकिन आया एक और ख़याल मन में, कविता लिख कर खुश करूँगा माँ को,
तो किया निश्चय, पूरी करूँगा अब इस कविता को ||
फिर किया मैंने मनन और लगाया अटूट ध्यान,
लेकिन कुछ भी न सूझा दिमाग में, क्या था मैं शब्दों से अनजान?
पर हार नहीं मानी मैंने और खूब किया उधेड़-बुन,
फिर भी अपनी भावनाओं की आवाज़ को मैं नहीं पारहा था सुन ||
अब थक गया था मैं, कुछ और नहीं सोच सकता था,
रखा था मैंने किताब पे कलम और लेटने चला था, कि तभी एक नए ख़याल ने मुझे दस्तक दिया था||
हम कर नहीं सकते माँ को शब्दों में बयान,
क्योंकि उसी ने तो सिखाया हमे इन शब्दों का ज्ञान ||
शब्द निर्माण से सृष्टि निर्माण, वही तो रही है रचयता,
जिसके बिना है हर कोई अधूरा, फिर चाहे मनुष्य या देवता ||
पेट काट कर उसी ने हमें दिया था जन्म पर मुख पे ना था पीड़ा का एक भी निशान,
उसी ने बताया हमें उस विधाता की पहचान ||
उसी ने सिखाया हमें इस भू पर चलना,
उसी ने बताया हमें एक अच्छा इंसान बनना ||
गोद मेंलेटाकर सुलाती है हमको,
अपनी भूक मार कर खिलाती है हमको ||
कहते हैं लोग की सबसे बड़ा है भगवान,
पर मैं कहता हूँ माँ है सबसे महान ||
मैं धन्य हूँ कि मुझे मिली है ऐसी माता,
जिसकी ममता और स्नेह से टल जाती हर बाधा ||
मैं करूँगा ये विनती परमात्मा से,
डाल देना मुझपर अपनी यह "आभा" हर जन्म में ||
(मेरी जननी का नाम "आभा" है)
मन में एक ख़याल आया, लिखूं अपनी माँ के लिए एक कविता,
जो हो सुन्दर, भावना से युक्त और दर्शाए मेरी माँ की ममता ||
जब बैठा मैं लिखने, आया न मन में कोई ख़याल,
भावनाएं विचार रही थी पुरे ब्रह्माण्ड में और दिमाग होरहा था बेहाल ||
फिर सोचा न हूँ मैं निराला, प्रसाद या पंत,
तो होगा यही बेहतर कि कर दूँ इस कविता का अंत ||
लेकिन आया एक और ख़याल मन में, कविता लिख कर खुश करूँगा माँ को,
तो किया निश्चय, पूरी करूँगा अब इस कविता को ||
फिर किया मैंने मनन और लगाया अटूट ध्यान,
लेकिन कुछ भी न सूझा दिमाग में, क्या था मैं शब्दों से अनजान?
पर हार नहीं मानी मैंने और खूब किया उधेड़-बुन,
फिर भी अपनी भावनाओं की आवाज़ को मैं नहीं पारहा था सुन ||
अब थक गया था मैं, कुछ और नहीं सोच सकता था,
रखा था मैंने किताब पे कलम और लेटने चला था, कि तभी एक नए ख़याल ने मुझे दस्तक दिया था||
हम कर नहीं सकते माँ को शब्दों में बयान,
क्योंकि उसी ने तो सिखाया हमे इन शब्दों का ज्ञान ||
शब्द निर्माण से सृष्टि निर्माण, वही तो रही है रचयता,
जिसके बिना है हर कोई अधूरा, फिर चाहे मनुष्य या देवता ||
पेट काट कर उसी ने हमें दिया था जन्म पर मुख पे ना था पीड़ा का एक भी निशान,
उसी ने बताया हमें उस विधाता की पहचान ||
उसी ने सिखाया हमें इस भू पर चलना,
उसी ने बताया हमें एक अच्छा इंसान बनना ||
गोद मेंलेटाकर सुलाती है हमको,
अपनी भूक मार कर खिलाती है हमको ||
कहते हैं लोग की सबसे बड़ा है भगवान,
पर मैं कहता हूँ माँ है सबसे महान ||
मैं धन्य हूँ कि मुझे मिली है ऐसी माता,
जिसकी ममता और स्नेह से टल जाती हर बाधा ||
मैं करूँगा ये विनती परमात्मा से,
डाल देना मुझपर अपनी यह "आभा" हर जन्म में ||
(मेरी जननी का नाम "आभा" है)


Wow ashutosh...heart touching lines...
ReplyDeletethank you.....
DeleteWell written..touched :)
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